टी. कृष्णमआचार्य
तिरुमलाई कृष्णमआचार्य (१८८८-१८८९) यह वैदिक परंपरा और योग शिक्षाओं और अभ्यास पर भारत के सबसे सम्मानित अधिकारीयों में से एक है l कृष्णमआचार्य जी शायद 'विन्यासा' की अवधारणा को पेश करने वाले पहले योग गुरु थे, विन्यासा का अर्थ सांस लेने के साथ समन्वित स्थिति की श्रृंखला l
आसान के महारत के आलावा, वह अपने शरीर के अनैच्छिक कार्यों को स्वैच्छिक नियंत्रण मे लाने में सक्षम थे l उनकी एक छात्र, इंदिरा देवी जिन्होंने इस बात को देखा, उन्होंने बताया कि एक बार एक मिनिट से अधिक समय तक दिल की धड़कन को रोकने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया l
उनके कुछ छात्र उन्हें एक सटीक, ऐसे शिक्षक के रूप में याद करते है, जो इतने गुस्सैल और आत्मकेंद्रित नहीं है, और वे कहते है, कि एक शिक्षक के रूप में उनका सिद्धांत यह था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये जो उपयुक्त है, वो सिखाया जाएँ l बिमारियों के निदान और उपचार के उनके कौशल और उनकी असाधारण योगिक शक्तियाँ उल्लेखनीय थींl कृष्णमआचार्य ने मैसूर के महाराजा और कई गणमान्य लोगों को योग सिखाया l महाराजा हजी मदत से, उन्होंने जगनमोहन महल, मैसूर में योगशाला शुरू की और उसे २० वर्षों तक प्रबंधित किया.
उनकी शिक्षाओं को उनके प्रमुख छात्र पट्टाभी जॉइस, B.K.S. अय्यंगार, इंदिरा देवी (आचार्य जी की पहिली महिला छात्र) और उनके बेटे T.K.V. देसीकचर द्वारा सुधारित और लोकप्रिय बनाया गया l
योग कि एक बहुत प्रभावशाली समकालीन शैली उनके द्वारा विकसित की गयी थी l जैसे पट्टाभि जॉइस योग की अष्टांग शैली, अय्यंगार योग, इंदिरा देवी जो पश्चिमी योग शैली की माँ के रूप में जनी जाती जाती है, T.K.V.का विनीयोग, जो पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय हुआ l